Aalhadini

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The Train... beings death 27

 कमल नारायण के पास से लौट कर इंस्पेक्टर कदंब ने  पुलिस स्टेशन में पैर रखा तो देखा कि अरविंद और अनन्या दोनों ही घबराए हुए से पुलिस स्टेशन में बैठे हुए थे। अरविंद और अनन्या को ऐसे अचानक पुलिस स्टेशन आया और इतना घबराया देख इंस्पेक्टर कदंब भी थोड़ा परेशान हो गए थे।


इंस्पेक्टर कदंब ने अंदर आते हुए पूछा, "क्या हुआ डॉक्टर साहब..! आप यहां इस तरह अचानक?"

 इंस्पेक्टर कदंब के सवाल पर अनन्या की रुलाई फूट पड़ी। अरविंद ने अनन्या के कंधे पर हाथ रखकर दिलासा देते हुए कदंब की तरफ देखते हुए कहा, "चिंकी..! चिंकी फिर से गायब है!"


 "क्या..? कैसे..? मतलब.. कैसे हुआ.. यह सब..??" इंस्पेक्टर कदंब ने चौकते हुए पूछा। 

"वो.. जब से चिंकी वापस लौटी थी तभी से कुछ अजीब सा बिहेव कर रही थी। उसका व्यवहार हमें कुछ अलग सा लगा था। चिंकी को वहां के सपने आने लगे थे या फिर यूं कहें कि उसे वहाँ के इल्युजन्स होने लगे थे। वो पूरी रात भर प्रिया का नाम लेकर चिल्लाने लगती थी या फिर रात भर घबराहट के कारण सो नहीं पाती थी। हमने साइकेट्रिस्ट को भी दिखाया था.. तो उन्होंने बताया कि जल्दी ही ठीक हो जाएगी। पर कल रात से ही वह कुछ अलग बीहेव कर रही थी और आज जब सुबह उठे तो वह अपने बेड पर नहीं थी। आसपास भी ढूंढ लिया उसका कहीं पता नहीं चला।" अरविंद भारी मन से सारी बातें बता रहे थे। अनन्या पास ही रखी कुर्सी पर बैठी हुई आंसू बहा रही थी।

 इंस्पेक्टर कदंब बहुत ही ज्यादा गौर से दोनों की बातें सुन रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ऐसा फिर से कैसे हो गया? लेकिन ये घबराहट की भी बात थी। कदंब ने कुछ सीरियस होकर पूछा, "डॉक्टर साहब..! आपको क्या लगता है कहीं चिंकी वापस ट्रेन में ही तो नहीं चली गई?"


यह सुनते ही अनन्या बहुत ज्यादा घबरा गई और डरते हुए बोली, "इंस्पेक्टर साहब चिंकी ने वापस आकर जब वहां की सारी बातें बताई.. तभी से मेरी चिंता के कारण हालत खराब हो रही है और आप कह रहे हैं कि वापस ट्रेन में ही तो नहीं चली गई?"


इतना बोलकर अनन्या चुप हो गई थी पर तुरंत ही अनन्या ने अपनी कही बात पर गौर किया.. साथ ही अनन्या को रियलाइज़ हुआ कि इंस्पेक्टर कदंब की बात भी सच हो सकती थी तो अनन्या ने बहुत ही ज्यादा घबराकर कहा, "कहीं उस मनहूस ट्रेन ने मेरी बेटी के साथ कुछ गड़बड़ ना कर दी हो..?"

 "आप चिंता मत कीजिए.. हम आपकी बेटी को जल्द से जल्द ढूंढने की कोशिश करेंगे। लेकिन मुझे लगता है आपको सबसे पहले घर जाकर चिंकी का सामान ढूंढना होगा.. शायद कुछ ऐसा मिले जिससे चिंकी के बारे में कुछ जानकारी मिल सके।" इंस्पेक्टर कदंब ने कहा।

 "जी इंस्पेक्टर..! जैसा आपको ठीक लगे! हम चिंकी के कमरे को देखेंगे शायद कुछ ऐसा मिल जाए जिससे चिंकी का कुछ पता चल सके। " अरविंद ने कहा।

फिर इंस्पेक्टर कदंब ने एक कॉन्स्टेबल को बुलाकर कहा, "तुम ऐसा करो अरविंद जी की कंप्लेंट लिख लो और आसपास के सभी पुलिस स्टेशन में भी खबर कर दो। अगर चिंकी कहीं गलती से चली गई होगी तो पता चल जाएगा।"  फिर इंस्पेक्टर ने अरविंद से कहा, "अरविंद जी..! आप कंप्लेन लिखवा दीजिए। हम जल्द से जल्द चिंकी को ढूंढने की कोशिश करेंगे।"

इंस्पेक्टर की बात सुनकर अरविंद और अनन्या कॉन्स्टेबल के साथ चले गए। इंस्पेक्टर कदंब ने अपने सर पर हाथ रख लिया। वह अपना सर पकड़ कर बैठ गए। तभी नीरज ने इंस्पेक्टर कदंब के रूम में एंट्री ली और पूछा, "क्या हुआ सर..? अरविंद जी और अनन्या जी आज फिर से पुलिस स्टेशन में? दोनों रो रहे हैं.. क्या हुआ..?"

 तभी इंस्पेक्टर कदंब ने अपनी गर्दन नीचे झुका कर अपना सर पकड़े हुए कहा, "कल रात से चिंकी गायब है!"

 "क्या..? कैसे..?" नीरज ने चौंककर पूछा। नीरज की हालत भी इंस्पेक्टर कदंब जैसे ही हैरान परेशान सी हो गई थी। इस कंडीशन में चिंकी का वापस गायब होना उन लोगों के लिए नई परेशानी लेकर आया था। तभी नीरज ने कहा, "सर..! मुझे लगता है कि हमें इस बारे में कमल नारायण जी से हेल्प लेनी चाहिए। वही अब हमारी हेल्प कर पाएंगे।"


 नीरज की बात सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब को भी इस केस में एक आशा की किरण के रूप में कमल नारायण जी ही दिखाई दिए। इंस्पेक्टर कदंब ने कहा, "नीरज..! हम सबसे पहले कमल नारायण जी से मिलने चलते है और डॉक्टर से पूछेंगे कि कमल नारायण जी कब तक ठीक हो जाएंगे। यह मामला गंभीर होता जा रहा है। ज्यादा देर करने पर बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है।"

 नीरज ने भी इंस्पेक्टर कदंब की बात मानते हुए डॉक्टर को कॉल किया। डॉक्टर शायद किसी इमरजेंसी केस में बिजी होंगे इसीलिए उन्होंने नीरज का कॉल आंसर नहीं किया। नीरज ने लगातार दो तीन कॉल कर दिए थे पर डॉक्टर फोन नहीं उठा रहे थे। नीरज ने परेशान होकर कहा, "सर..! डॉक्टर तो कॉल आंसर नहीं कर रहे हैं। मुझे लगता है हॉस्पिटल ही जाना होगा।"

नीरज के इतना कहते ही इंस्पेक्टर कदंब ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और नीरज के साथ जितनी तेजी से पुलिस स्टेशन पहुंचे थे उसे दुगनी तेजी से वापस बाहर चले गए।

 आधे घंटे बाद दोनों फिर से हॉस्पिटल के बाहर थे। अब की बार बिना किसी से पूछे इंस्पेक्टर कदंब और नीरज दोनों कमल नारायण जी की रूम में चले गए। उस टाइम कमल नारायण जी के बेटे बहू जो लक्ष्मी के माता पिता थे.. उनके रूम में मौजूद थे। दोनों के ही चेहरे रोए हुए से दिख रहे थे। लक्ष्मी का अचानक उन्हें ऐसे छोड़ कर जाना दोनों ही बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। साथ ही कमल नारायण जी की हालत ने उन्हें बहुत ज्यादा डरा दिया था। जिसके कारण वह लोग और भी ज्यादा परेशान दिख रहे थे। साथ ही में कमल नारायण जी उन्हें कुछ कहानी सुना रहे थे.. जिसे वो दोनों अपने पिता की बीमार हालत में होने वाला वहम और बीमारी के डर का आफ्टर इफेक्ट्स मानकर चुपचाप सुन रहे थे।

 जैसे ही इंस्पेक्टर कदंब ने कमल नारायण के कमरे में अंदर कदम रखा.. कमल नारायण के साथ उनके बेटे बहू भी चौंक गए और उन्होंने नासमझी से पूछा, "इंस्पेक्टर..! आप यहां इस वक्त..?"

 इंस्पेक्टर कदंब ने कहा, "हमें कमल नारायण जी की मदद चाहिए!"


 कमल नारायण ने चौंककर इंस्पेक्टर की तरफ देखते हुए नासमझी से पूछा, "कैसी मदद..?" 


कमल नारायण जी के बेटे बहू भी नासमझी से इंस्पेक्टर कदंब और नीरज की तरफ देख रहे थे। नीरज ने आगे बढ़कर कहा, "कमल नारायण जी..! आपने बताया था ना कि आप पता लगा सकते हैं कि ट्रेन का क्या मामला है? और आप इस मामले को सुलझाने में हमारी मदद भी कर सकते हैं।"

 यह सुनते ही कमल नारायण जी के बेटे बहू ने चौंककर कमल नारायण जी की तरफ देखते हुए पूछा, "पापा..! यह इंस्पेक्टर साहब क्या कह रहे हैं?"

 कमल नारायण जी ने कुछ नहीं कहा.. तब कमल नारायण जी के बेटे ने आगे कहा, "हमें तो लगा था कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है इसीलिए आप कुछ भी बोले जा रहे हैं। इसका मतलब है कि आपने जो कुछ भी थोड़ी देर पहले हमें बताया था वह सब सच था..!!"


 कमल नारायण जी ने हां में अपनी गर्दन हिलाई। यह देखते ही कि कमल नारायण जी उस बात के लिए अपनी सहमति जता रहे थे.. उनके बेटे बहू के मुंह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए थे। तभी कमल नारायण जी की बहू ने रोते हुए कहा, "पापा जी..! इसका मतलब है कि हमारी लक्ष्मी के साथ जो भी कुछ हुआ.. कहीं ना कहीं हमारा परिवार ही उस सब का दोषी है। इस तरह की घटनाएं और भी लोगों के साथ हुई होंगी। हम किसी ना किसी तरह से उन सबके गुनहगार बन गए।"

 कमल नारायण जी का बेटा अपनी पत्नी के कंधे पकड़कर उसे दिलासा दे रहा था। कमल नारायण जी शर्मिंदगी से सर झुकाए हुए अपने बेटे बहू की बातें सुन रहे थे। तभी इंस्पेक्टर कदंब ने आगे बढ़ते हुए कहा, "आप लोग कमल नारायण जी को कुछ भी मत कहिए! अगर इस समय भवानीपुर को मुसीबत से कोई बचा सकता है तो वह सिर्फ कमल नारायण जी ही हैं। क्योंकि अकेले वही हैं जो इस सब के पीछे के कारण को जानते हैं। तो जो भी कुछ हुआ है उसके लिए आप उन्हें दोष मत दीजिए।"

 नीरज ने आगे बढ़कर कहा, "कमल नारायण जी.. आपने काफी कुछ कहानी हमें सुना दी थी। पर अभी भी मेरे कुछ सवाल है.. मैं जिनके जवाब जानना चाहता हूं। आप उन सवालों के जवाब दे दीजिए.. जिससे हमारा शक भी दूर हो जाए और हम सब मिलकर इस ट्रेन को रोकने का कोई रास्ता भी ढूंढ पाए।"

 नीरज की बात में हां में हां मिलाते हुए कमल नारायण जी के बेटे ने कहा, "जी पापा..! अगर हमें सब कुछ पता होगा तो हम सब मिलकर आपकी हेल्प कर पाएंगे।"

 कमल नारायण जी ने कुछ सोचते हुए कहा, "पूछिये क्या सवाल है आपके?"

 नीरज ने आगे बढ़कर कहा, "आयाम द्वार को आपके गुरु आचार्य चतुरसेन और आचार्य अग्निवेश ने बंद कर दिया था। साथ ही साथ आपके मित्र गौतम ने उस स्थान की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। तो फिर यह ट्रेन का क्या सीन है? इसका आना जाना कैसे, क्यों और कब शुरू हुआ? और आप सभी जब आश्रम वापस आ गए तब किसी ने भी आपके दोस्तों आत्मानंद, वैदिक और गौतम के बारे में नहीं पूछा? जहां तक हमें पता चला है कि आप भवानीपुर में नहीं रहते.. आप अपनी पोती लक्ष्मी के बारे में सुनकर ही भवानीपुर आए थे? भवानीपुर छोड़ने का क्या कारण था?"


एक साथ नीरज के इतने सारे सवाल सुनकर कमल नारायण जी के बेटे बहू ने असमंजस से एक एक कर सभी को देखा और कमल नारायण जी के बेटे ने भी कहा, "हां पापा... हम भी जानना चाहते हैं कि आप क्यों नहीं चाहते थे कि हम लोग भवानीपुर रहे? आप तो इससे पहले तो कभी भी यहां नहीं आए थे? हमने कितनी बार आपको यहाँ बुलाया था.. पर आप कभी आने के लिए राजी ही नहीं हुए.. और अब बता रहे हैं कि आप पहले से भवानीपुर में रहे थे।"


 यह बात सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब और नीरज दोनों ही चौक गए और उन्होंने कंफ्यूजन से कमल नारायण जी की तरफ देखा। कमल नारायण जी ने उनकी  नज़रों के सवालों को समझते हुए अपनी गर्दन झुकाए हुए कहा, "हमें हमारे गुरु जी ने मना किया था!"


 यह सुनते ही नीरज ने पूछा, "मतलब..! कहना क्या चाहते हैं आप?"


तब कमल नारायण जी ने आगे की कहानी सुनाना शुरू किया। 

"जब हम आयाम द्वार बंद करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आश्रम पहुंचे.. तब तक नित्य क्रिया होने के बाद सुबह की पूजा पाठ भी संपन्न हो चुकी थी। सभी लोग आचार्य चतुरसेन और आचार्य अग्निवेश को आश्रम में ना पाकर परेशान थे। सभी सम्भावित जगहों पर ढूंढने के बाद आश्रम के गुप्तचरों को दोनों आचार्यों को ढूंढने के कार्य में लगा दिया गया था। सभी को कुछ अनहोनी का अंदेशा होने लगा था.. इसीलिए आचार्यों की खोज तेज़ कर दी गयी थी।


 तभी सभी को पता चला कि कल रात से गौतम, कमल नारायण, आत्मानंद और वैदिक चारों ही चुपके से आश्रम के बाहर कहीं गए थे और रात भर से चारों लोग वापस नहीं लौटे थे। आचार्यों के साथ साथ चारों बच्चों का भी गायब होना  सभी के लिए बहुत ही चिंता का प्रश्न था.. इसीलिए बाकी आचार्यों ने चिंतित होकर कमल नारायण, आत्मानंद और वैदिक तीनों के माता पिता को उनके  गायब होने की सूचना दे दी थी।

 कुछ ही देर में वह सब भी आश्रम पहुंचने वाले थे। यह सुनते ही आचार्य चतुरसेन और आचार्य अग्निवेश को चिंता होने लगी थी। उन्होंने तुरंत ही अपनी जगह से उठते हुए कहा, "आप लोगों को उस समय कुछ देर प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। इतनी अचानक आप लोगों ने आत्मानंद, कमल नारायण और वैदिक के परिवार वालों को सूचना दे दी। क्यों..??"

 यह बोलते समय आचार्य चतुरसेन बहुत ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहे थे। उन्होंने अपने अनुचरों से कहा, "जैसे ही इन बच्चों के माता-पिता गुरुकुल पहुंचे.. उन्हें जल्दी से जल्दी हमारे कक्ष में ले आइएगा। और हां.. इस बात का ध्यान रखिएगा कि कोई भी बच्चों के माता-पिता से बात नहीं कर पाए। सबसे पहले उनसे हम ही बात करेंगे।" इतना बोलकर आचार्य गुस्से से अपने कक्ष की ओर चले गए। आचार्य चतुरसेन को इससे पहले किसी ने भी इतना क्रोधित नहीं देखा था.. इसीलिए बाकी सभी आचार्य बहुत डरे हुए दिखाई दे रहे थे।



क्रमशः....

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6 Comments

Punam verma

28-Mar-2022 08:48 AM

बहुत ही जबरदस्त

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Art&culture

05-Mar-2022 11:50 PM

बहुत खूब

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बहुत खूब

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Aalhadini

07-Mar-2022 12:26 PM

धन्यवाद 🙏🏼

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